भारत में जब भी संस्कृति और राजनीहर घर सिंदूर योजना: क्या यह महिला सशक्तिकरण है या सांस्कृतिक प्रतीकों का राजनीतिकरण?ति का मेल होता है, विवाद होना तय है। ठीक ऐसा ही हुआ 2025 में बीजेपी द्वारा शुरू की गई हर घर सिंदूर योजना के साथ। इस योजना ने एक ओर “नारी सशक्तिकरण” और “राष्ट्रीय एकता” का दावा किया, वहीं दूसरी ओर यह आरोपों के घेरे में आ गई कि सरकार निजी धार्मिक प्रतीकों का राजनीतिकरण कर रही है।

योजना का उद्देश्य क्या था?
हर घर सिंदूर योजना के तहत बीजेपी ने देश की विवाहित हिंदू महिलाओं को सिंदूर लगाने के लिए प्रोत्साहित किया। पार्टी कार्यकर्ताओं को घर-घर जाकर सिंदूर बांटने के निर्देश दिए गए। दावा यह किया गया कि सिंदूर सिर्फ एक धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व” और “राष्ट्र की एकता” का प्रतीक है।
बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा:
“सिंदूर नारी शक्ति और समर्पण का प्रतीक है। हर घर सिंदूर योजना महिला सशक्तिकरण का प्रतीक है।”

योजना की पृष्ठभूमि: ऑपरेशन सिंदूर से जुड़ाव
7 मई, 2025 को भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान और POK में आतंकियों के ठिकानों पर हमला किया। यह हमला कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में था। ऑपरेशन को जबरदस्त समर्थन मिला।
इस सैन्य विजय के बाद बीजेपी ने हर घर सिंदूर योजना लॉन्च की, ताकि राष्ट्रवाद की भावना को सांस्कृतिक जुड़ाव से और मजबूत किया जा सके।
सिंदूर: एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक प्रतीक
हिंदू परंपरा में सिंदूर विवाहित महिलाओं के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह न केवल पति की लंबी उम्र की कामना का प्रतीक है, बल्कि यह आत्म-सम्मान, समर्पण और नारी की भावनाओं को भी दर्शाता है।
माता पार्वती और भगवान शिव की कथा में सिंदूर को प्रेम और भक्ति का प्रतीक माना गया है। इसे आज्ञा चक्र पर लगाया जाता है, जो मानसिक ऊर्जा का केंद्र होता है।
विवाद कैसे शुरू हुआ?
जैसे ही योजना की घोषणा हुई, सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आईं। सवाल उठने लगे:
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क्या एक निजी धार्मिक प्रतीक को सरकारी स्तर पर प्रचारित करना ठीक है?
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क्या यह महिलाओं की भावनाओं के साथ खेल है?
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क्या यह महिला सशक्तिकरण है या संस्कृति का राजनीतिक दोहन?
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं
@NehaSinghratho ने लिखा:
“अब हर महिला की मांग में मोदी जी का सिंदूर होगा? ये कौन सी संस्कृति है?”
@aviatoramarnath ने तीखा कटाक्ष किया:
“मेरा पति जिंदा है, मोदी सिंदूर से भड़की महिला।”
यह ट्वीट्स वायरल हुए और योजना पर तंज कसने का सिलसिला शुरू हो गया।
धार्मिक और सामाजिक संगठनों की राय
वाराणसी के पंडित आचार्य रमेश शास्त्री ने कहा:
“सिंदूर एक आध्यात्मिक और वैवाहिक प्रतीक है। इसे राजनीतिक हथियार बनाना हमारी परंपरा का अपमान है।”
महिला अधिकारों की संस्था नारी शक्ति संगठन की अध्यक्ष राधिका शर्मा ने कहा:
“सिंदूर लगाना महिलाओं का व्यक्तिगत निर्णय होना चाहिए, न कि किसी राजनीतिक अभियान का हिस्सा।”
विपक्षी नेताओं की प्रतिक्रिया
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ममता बनर्जी (सीएम, पश्चिम बंगाल): “बीजेपी को निजी परंपराओं को राजनीति से दूर रखना चाहिए।”
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शशि थरूर (कांग्रेस): “सिंदूर को राजनीति में लाना गलत है, यह पवित्रता का प्रतीक है।”
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नीतीश कुमार (बिहार): “मैं कुछ नहीं कहना चाहता, पर एकता के प्रयास का स्वागत करता हूँ।”

बीजेपी का पक्ष
रविशंकर प्रसाद जैसे बीजेपी नेताओं ने योजना का समर्थन किया। उनका कहना था:
“हर घर सिंदूर योजना का उद्देश्य केवल महिलाओं को सम्मान देना और राष्ट्रीयता की भावना को प्रबल करना है।”
नरेंद्र मोदी का संकेत
हालांकि पीएम मोदी ने इस योजना का सीधा उद्घाटन नहीं किया, लेकिन 29 मई, 2025 की एक रैली में उन्होंने कहा:
“हमारी संस्कृति हमारी ताकत है। हर घर में सिंदूर का सम्मान होना चाहिए।”
निष्कर्ष: महिला सशक्तिकरण या सांस्कृतिक राजनीतिकरण?
हर घर सिंदूर योजना ने एक जरूरी सवाल उठाया है—क्या सरकार को धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीकों को अपने राजनीतिक उद्देश्य के लिए इस्तेमाल करना चाहिए?
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अगर हाँ, तो यह एक सांस्कृतिक जुड़ाव का प्रयास है।
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अगर नहीं, तो यह एक व्यक्तिगत परंपरा का राजनीतिकरण है।
जो स्पष्ट है, वह यह कि इस योजना ने सिंदूर जैसे निजी प्रतीक को एक राष्ट्रीय बहस में बदल दिया है।
